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Tuesday, April 16, 2019

यमरक्षण


सबके जीवन का आज नहीं तो कल समापन होना ही है। यह बात परम सत्य है। तो ऐसा क्यूँ होता है कि कुछ लोग आज, वहीं कुछ लोग कल चल गुज़र पाएंगे?
क्योंकि सच तो यह है कि हम मे से किसी को जाना नहीं है! बल्कि, मौत तो एक किस्म की परीक्षा है, और इस पहेली को बूझ सको, तो आप भी यमरक्षण के योगी बन पाते हो।
अब आप पूछोगे कि यमरक्षण क्या बला है?
दरअसल यह बला नहीं, बल्कि हर इंसान का हक़ है। अब अगर आपको जीने कि तमन्ना न हो, तब तो अलग बात है। लेकिन हम अक्सर ऊपर वाले से प्रार्थना करते है कि काश हमे और हमारे चाहने वालों को लंबी उम्र का वरदान मिले। उस वरदान को पाने का तरीक़ा है यमरक्षण।
बोहुत ही कम लोगो को यमरक्षण नसीब होता है। और इसकी वजह यह है कि ज़्यादातर लोगो को यह नहीं पता के उनकी अच्छी कीसमात दरअसल यमरक्षण वरदान है।
समई तो कहता हूँ हम सब को मूहीम चलानी होगी ताकि हमे भी यमरक्षण वरदान मिल सके।

शोक


हैलो, कविता है क्या?”
आन कौन बोल रहे?” एक वृद्ध आवाज़ ने पूछा।
जी मेरा नाम सीमा है। मई कविता की पुरानी सहेली हूँ। आप ज़रा उसे बुला देंगी?”
कुछ वक़्त के मौन के बाद, उस वृद्ध महिला ने फोन काट दिया। सपना बड़ी हैरान हुई। यकीनन यह कविता की सास थी। लेकिन कविता तो बड़ी तरीफ़ करती थी – मेरे सास बड़ी अच्छी है, प्यारी है, यह और वोह...
सीमा ने फिर से फोन घुमाया। बहाने के अंदाज़ मे कहा, “लगता है कि फोन कट गया था।“ सीमा ने हस्ते हुए कहा। एक लंबी सांस लेकर वोह फिर बोली, “यह कविता कांडपाल का ही नंबर है न?
क्या आप हमारे साथ मज़ाक कर रहे हो?”
यह सुनकर सीमा थोड़ी तिलमिला उठी। “क्या मतलब है आपका? पाँच महीने पहले मेरी उससे बात हुई थी, उसके मोबाइल पर। अब मोबाइल लग नहीं रहा सो लैंड्लाइन पर कर रही हूँ, जिसका नंबर उसने मुझे दिया था। अगर आप बात नहीं करवा सकती तो कोई बात नहीं।“
कविता कि सास ने कुछ झेपते हुए कहा। “माफ करना, शायद तुम्हें पता नहीं है।“
सीमा ने माथा खुजाते हुए पूछा, “क्या?”
“कविता को गुज़रे हुए चार महीने हो चुके है।“
यह सुनते ही सीमा के मन को धड़ाम सा धक्का लगा। अब ऐसे मे वापिस बोले भी तो क्या बोले, उसका दिमाग एक दम से सुन्न पड़ गया। क्या पाँच महीने इतने लंबे होते है कि वोह किसी कि ज़िंदगी को ले जा ले, और आपको कानो कान खबर भी न लगे? पाँच महीने पहले तो अच्छी ख़ासी थी। ग्प्पे लड़ाती, चुट्कुले सुनती और फटफट हस्ती रहती।
“जी माफ कीजिएगा मुझे सच मे मालूम न था। वैसे ये हुए कैसे?”
“हार्ट अटैक।“ कविता कि सास बुझे हुए स्वर मे बोली। कविता ने बतलाया तो था कि उसका वजन काफी बढ़ गया है। ख़ैर, सोलह वर्ष से दोनों ने एक दूजे को न देखा था। घर से बाहिर मुश्किल से निकालना होता है सीमा का, अब जो दिल्ली आयी थी, सोचा कविता से मिलते चलती। वोह भी नसीब मे न था। अब वाहा जाकर क्या फ़ायदा।
ऐसा सीमा ने सोचा था। उसके पति ने इस सोच का विरोध किया, और कहा कि शोक मनाने के ख़ातिर उन दोनों को जाना चाइए। और कुछ नहीं तो कम से कम उसके दोनों बच्चो को तो एक बार के लिए देख ले।
आख़िरी बार जब कविता से बात हुई थी, उसने मज़ाक का प्रस्ताव रखा था। अपने बेटी कि शादी कविता के बेटे के साथ करवाने का।


बब्बी की बीमारी


बड़ी अजब सी बीमारी होती है अलग अलग लोगो को।
निसंकोच भाव से कहे, तो सबसे अजब बीमारी होती है धोने की। ऐसा होता है, कुछ लोग सिर्फ अपना हाथ धोते रहते है, कुछ लोग चेहरा, गार्डन इत्यादि। हलकी ज़्यादातर लोग वोह धोते है, जो न बता सकते है, न ही दिखा सकते है।
जहा तक बब्बी की बात करे, उसे भी कुछ ऐसे बीमारी थी। घर वाले जब भी उसकी और देखते, वोह गुसलखाने मे, एक नलके के नीचे अपने पाँव धोती रहती थी। एक समय था जब घर वाले पूछ-पूछकर पागल हो चुके थे। अब तो दो-चार गालियां बड़-बड़ाकर अपने रास्ता नापते है। बब्बी का क्या, वोह लगी रहती है, अपने पाँव रगड़ने।
लेकिन वोह तब की बात थी। अब, बब्बी एक बड़ी औरत है। अच्छी नौकरी, लंबी बरस की शादी और दो स्वस्थ बच्चे। लगभग सब कुछ बादल चुका, सिवाए एक चीज़ के।
वोह बीमारी, जो अब एक आदत बन चुकी है।
देर रन को जब घर आती है। बच्चे सो चुके होंगे, और अब उसके आदमी मे भी उतनी ऊर्जा नहीं रही। जब कोई और नहीं होता- ना बच्चो का दुलार, या पति का प्यार, तब एक ही चीज़ उसे सुकून दिला पाती है।
गुसलखाने के नलके की वह धार, जिसके नीचे पूरी रात अपने पाँव साफ़ करती रहती है।