बड़ी अजब सी बीमारी होती है
अलग अलग लोगो को।
निसंकोच भाव से कहे, तो सबसे
अजब बीमारी होती है धोने की। ऐसा होता है, कुछ लोग सिर्फ अपना हाथ धोते रहते है, कुछ लोग
चेहरा,
गार्डन इत्यादि। हलकी ज़्यादातर लोग वोह धोते है, जो न बता सकते है, न ही
दिखा सकते है।
जहा तक बब्बी की बात करे, उसे भी
कुछ ऐसे बीमारी थी। घर वाले जब भी उसकी और देखते, वोह गुसलखाने मे, एक नलके के नीचे अपने पाँव धोती रहती थी। एक
समय था जब घर वाले पूछ-पूछकर पागल हो चुके थे। अब तो दो-चार गालियां बड़-बड़ाकर अपने
रास्ता नापते है। बब्बी का क्या, वोह लगी रहती है, अपने पाँव रगड़ने।
लेकिन वोह तब की बात थी। अब, बब्बी
एक बड़ी औरत है। अच्छी नौकरी, लंबी बरस की शादी और दो स्वस्थ बच्चे। लगभग सब कुछ
बादल चुका, सिवाए एक चीज़ के।
वोह बीमारी, जो अब
एक आदत बन चुकी है।
देर रन को जब घर आती है। बच्चे
सो चुके होंगे, और अब उसके आदमी मे भी उतनी ऊर्जा नहीं रही। जब कोई
और नहीं होता- ना बच्चो का दुलार, या पति का प्यार, तब एक ही चीज़ उसे सुकून दिला पाती है।
गुसलखाने के नलके की वह धार, जिसके
नीचे पूरी रात अपने पाँव साफ़ करती रहती है।
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