“हैलो, कविता
है क्या?”
“आन कौन बोल रहे?” एक वृद्ध आवाज़ ने पूछा।
“जी मेरा नाम सीमा है। मई कविता की पुरानी सहेली
हूँ। आप ज़रा उसे बुला देंगी?”
कुछ वक़्त के मौन के बाद, उस
वृद्ध महिला ने फोन काट दिया। सपना बड़ी हैरान हुई। यकीनन यह कविता की सास थी।
लेकिन कविता तो बड़ी तरीफ़ करती थी – मेरे सास बड़ी अच्छी है, प्यारी
है,
यह और वोह...
सीमा ने फिर से फोन घुमाया।
बहाने के अंदाज़ मे कहा, “लगता है कि फोन कट गया था।“ सीमा ने हस्ते हुए कहा।
एक लंबी सांस लेकर वोह फिर बोली, “यह कविता कांडपाल का ही नंबर है न?”
“क्या आप हमारे साथ मज़ाक कर रहे हो?”
यह सुनकर सीमा थोड़ी तिलमिला
उठी। “क्या मतलब है आपका? पाँच महीने पहले मेरी उससे बात हुई थी, उसके
मोबाइल पर। अब मोबाइल लग नहीं रहा सो लैंड्लाइन पर कर रही हूँ, जिसका
नंबर उसने मुझे दिया था। अगर आप बात नहीं करवा सकती तो कोई बात नहीं।“
कविता कि सास ने कुछ झेपते
हुए कहा। “माफ करना, शायद तुम्हें पता नहीं है।“
सीमा ने माथा खुजाते हुए
पूछा,
“क्या?”
“कविता को गुज़रे हुए चार
महीने हो चुके है।“
यह सुनते ही सीमा के मन को
धड़ाम सा धक्का लगा। अब ऐसे मे वापिस बोले भी तो क्या बोले, उसका
दिमाग एक दम से सुन्न पड़ गया। क्या पाँच महीने इतने लंबे होते है कि वोह किसी कि
ज़िंदगी को ले जा ले, और आपको कानो कान खबर भी न लगे? पाँच
महीने पहले तो अच्छी ख़ासी थी। ग्प्पे लड़ाती, चुट्कुले सुनती और फटफट हस्ती रहती।
“जी माफ कीजिएगा मुझे सच मे
मालूम न था। वैसे ये हुए कैसे?”
“हार्ट अटैक।“ कविता कि सास
बुझे हुए स्वर मे बोली। कविता ने बतलाया तो था कि उसका वजन काफी बढ़ गया है। ख़ैर, सोलह
वर्ष से दोनों ने एक दूजे को न देखा था। घर से बाहिर मुश्किल से निकालना होता है
सीमा का, अब जो दिल्ली आयी थी, सोचा कविता से मिलते चलती। वोह भी नसीब मे न
था। अब वाहा जाकर क्या फ़ायदा।
ऐसा सीमा ने सोचा था। उसके
पति ने इस सोच का विरोध किया, और कहा कि शोक मनाने के ख़ातिर उन दोनों को जाना
चाइए। और कुछ नहीं तो कम से कम उसके दोनों बच्चो को तो एक बार के लिए देख ले।
आख़िरी बार जब कविता से बात
हुई थी, उसने मज़ाक का प्रस्ताव रखा था। अपने बेटी कि शादी
कविता के बेटे के साथ करवाने का।
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