Tuesday, April 16, 2019

जुंगली पत्ते





“साली कुतिया!” काक्कू अपनी १७ वर्षीय बहन पर चिल्लाया। उसकी ख़ुद की उम्र महज़ ७ वर्ष थी।

गुड़िया, उसकी बहन काक्कू के पीछे बाघने लगी, हाथ मे चप्पल पकड़ कर। काककू था तो दाना सा ही, भाग के छिप गया जुंगली झाड़ियो के बीच।
वह बखूबी जानता था कि उसका बड़ा भाई, जो पहले इनहि झाड़ियो के बीच घूमता रेहता था, अब बिस्तर पर पड़ा है। एक टांग पर पीले फोड़े का प्रहार हुआ था। जब रात-दिन फोड़ो से सफ़ेद पस और काला खून निकलता, तब घर वालों ने जुंगली पत्तों को दोशी ठहराया।

गुड़िया इतनी बौराई नहीं थी कि अपने टाँगो को सड़ाए अपने नकारा भाई के चक्कर मे। वोह जानती थी कुदरत ने उसे एक ही चीज़ सही दी है – वोह है उसकी मुलायम, खूबसूरत टाँगे। उमस से लेस ग्रीष्म मे भी यू ही नहीं फुल्ल साइज़ पाजामे पहनती थी वोह।

काक्कू बाहर निकला, लेकिन तब ही जब उसकी बहन फूंफुनती हुई वापिस अपने कमरे मे चली गयी।




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